दिल्ली, 16 सितंबर 2025। भारत की राजधानी दिल्ली में लड़कियों की संख्या में लगातार कमी एक गंभीर सामाजिक समस्या बनती जा रही है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली का लिंग अनुपात (सेक्स रेशियो) खतरनाक स्तर तक गिर गया है, जो प्रति 1000 पुरुषों पर 920 महिलाओं के आसपास पहुंच गया है। यह राष्ट्रीय औसत 943 से काफी नीचे है। विशेषज्ञों ने इस गिरावट के पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारणों को जिम्मेदार ठहराया है, जिसने समाज और नीति निर्माताओं के लिए चेतावनी की घंटी बजा दी है।
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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में नवजात शिशुओं का लिंग अनुपात विशेष रूप से चिंताजनक है। स्वास्थ्य मंत्रालय के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के कई इलाकों में प्रति 1000 पुरुष शिशुओं पर केवल 850-900 गर्ल शिशु दर्ज किए गए। इस असंतुलन का प्रमुख कारण लिंग-आधारित गर्भपात है, जो गैरकानूनी होने के बावजूद कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है। प्री-नेटल सेक्स डिटर्मिनेशन टेस्ट (जो भारत में प्रतिबंधित है) का दुरुपयोग और बेटियों के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह इस समस्या को बढ़ा रहे हैं।
दिल्ली के कुछ समृद्ध इलाकों में भी यह रुझान देखा गया है, जो दर्शाता है कि यह केवल आर्थिक स्थिति तक सीमित नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता रीता सिंह कहती हैं, “पितृसत्तात्मक मानसिकता और दहेज जैसी प्रथाएं बेटियों को बोझ मानने की सोच को बढ़ावा देती हैं। कई परिवार बेटों को वंश चलाने वाला मानते हैं, जिसके चलते गर्भ में ही लिंग चयन हो रहा है।” इसके अलावा, शिक्षा और जागरूकता की कमी भी इस समस्या को गहरा रही है। दिल्ली के ग्रामीण और झुग्गी-झोपड़ी वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच और अवैध अल्ट्रासाउंड केंद्रों का संचालन स्थिति को और जटिल बनाता है।
दिल्ली सरकार ने इस मुद्दे पर कई कदम उठाए हैं, जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान को बढ़ावा देना और अवैध लिंग परीक्षण केंद्रों पर छापेमारी। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि केवल सख्त कानून पर्याप्त नहीं हैं। सामाजिक जागरूकता, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा और महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों को बढ़ाना जरूरी है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में एक बयान में कहा, “हम लिंग अनुपात में सुधार के लिए स्कूलों और समुदायों में जागरूकता अभियान चला रहे हैं।”
यह गिरावट न केवल सामाजिक असंतुलन को बढ़ावा दे रही है, बल्कि भविष्य में विवाह, जनसंख्या संरचना और सामाजिक स्थिरता पर भी असर डालेगी। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि यह रुझान नहीं रुका, तो दिल्ली में लैंगिक असमानता और अपराध दर में वृद्धि हो सकती है। समाज को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
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