नई दिल्ली, 15 सितंबर 2025। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिकता पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी किया है। यह अधिनियम, जो अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश किया गया और अप्रैल 2025 में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बना, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में केंद्र सरकार की भूमिका बढ़ाता है। याचिकाकर्ताओं, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य शामिल हैं, ने दावा किया कि यह अधिनियम धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-26) का उल्लंघन करता है।
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कोर्ट ने 15 सितंबर 2025 को सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि वक्फ बाय यूजर (उपयोग से वक्फ) की अवधारणा को कमजोर करने से बड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि वक्फ मुस्लिम समुदाय का अभिन्न हिस्सा है, और इसकी धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप असंवैधानिक है। कोर्ट ने तीन मुख्य मुद्दों वक्फ बाय यूजर, गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति और सरकारी भूमि की पहचान पर अंतरिम निर्देश दिए।
कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों के डी-नोटिफिकेशन (वक्फ स्थिति समाप्त करने) पर पूर्ण रोक लगा दी है। विशेष रूप से, वक्फ बाय यूजर, वक्फ डीड या कोर्ट द्वारा घोषित संपत्तियों को डी-नोटिफाई करने की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया। कोर्ट ने आदेश दिया कि कोई भी वक्फ संपत्ति—रजिस्टर्ड, अनरजिस्टर्ड या वक्फ बाय यूजर को डी-नोटिफाई, बदलाव या हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, जब तक अंतिम फैसला न हो। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई (5 मई 2025) तक कोई डी-नोटिफिकेशन या नियुक्तियां नहीं होंगी।
कोर्ट ने याचिकाओं को क्लब कर लिया और केवल पांच वकीलों को सुनने का फैसला किया। इसके अलावा, केंद्र वक्फ काउंसिल या राज्य वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियां निलंबित रखी गईं। यह रोक वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने वाले प्रावधानों पर भी लागू है, जहां ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति द्वारा शिकायत पर संपत्ति का वक्फ दर्जा समाप्त करने का प्रावधान था। कोर्ट ने चेतावनी दी कि ऐसा करना ‘जज इन ओन कोज’ (स्वयं अपना न्यायाधीश) जैसा होगा।
कोर्ट ने अधिनियम के उन प्रावधानों को बरकरार रखा जो वक्फ संस्थाओं के धर्मनिरपेक्ष और प्रशासनिक पहलुओं को नियंत्रित करते हैं। इसमें केंद्र वक्फ काउंसिल की संरचना में बदलाव, जहां यूनियन मंत्री चेयरपर्सन होंगे, और सदस्यों में सांसद, न्यायाधीश व मुस्लिम कानून विशेषज्ञ शामिल होंगे। गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में नामित करने का प्रावधान भी लागू रहेगा, हालांकि कोर्ट ने इसकी आवश्यकता पर बहस की।
ट्रिब्यूनल के फैसलों की अंतिमता समाप्त करने और हाईकोर्ट में अपील की अनुमति बरकरार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिनियम धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि दक्षता बढ़ाने के लिए है। हालांकि, एससी/एसटी मुस्लिमों के लिए वक्फ बनाने की पाबंदी को सुरक्षात्मक बताते हुए केंद्र ने बचाव किया, लेकिन कोर्ट ने इस पर गहन सुनवाई का संकेत दिया। अंतिम फैसला मई 2025 में होगा, जब संपूर्ण अधिनियम की वैधता तय की जाएगी।
फैसले का प्रभाव
यह अंतरिम आदेश वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, लेकिन विपक्ष ने इसे आंशिक राहत बताया। ओवैसी ने कहा कि अधिनियम भेदभावपूर्ण है, जबकि केंद्र ने इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला बताया। कोर्ट ने 70 से अधिक याचिकाओं को सुना और नई याचिकाओं पर रोक लगाई। यह फैसला वक्फ बोर्डों को अस्थायी राहत देता है, लेकिन लंबी सुनवाई से मुस्लिम समुदाय की चिंताएं बनी रहेंगी। कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने संतुलन बनाते हुए धार्मिक अधिकारों की रक्षा की प्राथमिकता दी।
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