लखनऊ, 13 सितंबर 2025। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक हलचल में एक बार फिर पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी नूतन ठाकुर का नाम चर्चा में आ गया है। लखनऊ के तालकटोरा थाने में उनके खिलाफ फर्जी दस्तावेजों से धोखाधड़ी और पद का दुरुपयोग करने का मुकदमा दर्ज कराया गया है। यह मामला 1999 का है, जब अमिताभ ठाकुर देवरिया जिले में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद पर तैनात थे।
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शिकायतकर्ता अलोक कुमार श्रीवास्तव ने आरोप लगाया है कि नूतन ठाकुर ने फर्जी नाम और पते का इस्तेमाल करके देवरिया के जिला उद्योग केंद्र से औद्योगिक प्लॉट बी-2 का आवंटन कराया। यह खुलासा न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि ठाकुर दंपति की राजनीतिक सक्रियता को देखते हुए इसे सियासी साजिश भी माना जा रहा है। ठाकुर दंपति ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया है, लेकिन अब जांच के दायरे में आने से उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
1999 का चौंकाने वाला फर्जीवाड़ा
शिकायत के अनुसार, 1999 में नूतन ठाकुर ने खुद को “नूतन देवी, पत्नी अभिजीत ठाकुर, ग्राम खैर, जिला सीतामढ़ी, बिहार” बताकर आवेदन किया। इसमें एफिडेविट, पहचान पत्र, ट्रेजरी चालान और ट्रांसफर डीड जैसे दस्तावेज फर्जी बताए गए हैं। इनका इस्तेमाल देवरिया के जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक को सौंपा गया, जिससे प्लॉट का आवंटन हो गया। बाद में, इस प्लॉट को नूतन ठाकुर ने अपने असली नाम से बेच दिया, जिससे लाभ कमाया।
शिकायत में दावा किया गया है कि अमिताभ ठाकुर ने अपनी एसपी की हैसियत का फायदा उठाकर इस प्रक्रिया को प्रभावित किया। उन्होंने न केवल अवैध आवंटन की जानकारी होने पर एफआईआर दर्ज नहीं कराई, बल्कि अधिकारियों पर दबाव डालकर परिवार को सरकारी लाभ दिलवाए। यह मामला 26 साल पुराना होने के बावजूद अब खुला है, क्योंकि शिकायतकर्ता ने केंद्र और राज्य के शीर्ष अधिकारियों को पत्र लिखा था। पुलिस ने आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखे से जालसाजी) और अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है।
अमिताभ ठाकुर और नूतन ठाकुर लंबे समय से सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। अमिताभ को 2021 में सेवानिवृत्ति दी गई थी, और वे आजाद अधिकार सेना के अध्यक्ष हैं। नूतन एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। दोनों ने अक्सर योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है, जिसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगाना और आंदोलन शामिल हैं।
पहले भी उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हो चुके हैं, जैसे 2015 में रेप का झूठा केस, जो बाद में गलत साबित हुआ। ठाकुर दंपति का दावा है कि यह एफआईआर उनकी सरकार विरोधी गतिविधियों का बदला है। उन्होंने बयान जारी कर कहा कि यह पूरी तरह राजनीतिक रूप से प्रेरित है और वे अपनी बेगुनाही साबित करेंगे। शिकायतकर्ता ने सीबीआई या एसआईटी से जांच की मांग की है, जबकि ठाकुर पक्ष इसे सिविल विवाद से क्रिमिनल बनाने की कोशिश बता रहा है।
यह मुकदमा ठाकुर दंपति के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। यदि आरोप साबित हुए, तो पद के दुरुपयोग और फर्जीवाड़े के कारण लंबी कानूनी लड़ाई और सजा का सामना करना पड़ सकता है। पुलिस जांच में दस्तावेजों की पड़ताल होगी, और पुराने रिकॉर्ड्स खंगाले जाएंगे। ठाकुर दंपति ने राजनीतिक प्रतिशोध का हवाला देकर अपनी सफाई दी है, लेकिन अब अदालत में जवाब देना होगा। यह मामला उत्तर प्रदेश की राजनीति में वंशवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों को नई दिशा दे सकता है, क्योंकि ठाकुर अक्सर ऐसी ही मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे हैं। जनता में भी इस पर बहस छिड़ी है, जहां कुछ इसे न्याय का हिस्सा मान रहे हैं, तो कुछ साजिश। कुल मिलाकर, 1999 का यह पुराना कांड अब ठाकुर दंपति को बुरे फंसे हुए दिखा रहा है।
यह मामला न केवल ठाकुर दंपति की छवि को प्रभावित करेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक साजिशों को भी उजागर करता है। जांच का इंतजार ही बताएगी कि यह फर्जीवाड़ा है या बदले की कार्रवाई। लोकतंत्र में पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ के आरोपों से बचना भी उतना ही महत्वपूर्ण। ठाकुर दंपति की लड़ाई अब अदालत में होगी, जहां सच्चाई सामने आएगी।
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