नई दिल्ली/टोक्यो, 5 सितंबर 2025। India-Japan Defence Deal: भारत और जापान, एशिया की दो प्रमुख लोकतांत्रिक शक्तियां, अपनी रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, दोनों देश संयुक्त रूप से एक नई पीढ़ी की लंबी दूरी की हवेतून-हवेत मार करने वाली मिसाइल (BVRAAM) विकसित करने पर विचार कर रहे हैं, जिसका पल्ला 300 किलोमीटर से अधिक होगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का लक्ष्य 2030 तक इस मिसाइल को युद्धक्षेत्र में तैनात करना है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सामरिक संतुलन को बदलने की क्षमता रखती है। यह सहयोग दोनों देशों की बढ़ती रक्षा और तकनीकी साझेदारी का प्रतीक है।
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परियोजना का सामरिक महत्व
भारत और जापान का यह संयुक्त प्रयास क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और उसके उन्नत मिसाइल कार्यक्रमों, जैसे PL-16 (200-250 किमी) और PL-17 (400+ किमी), के जवाब में है। ये चीनी मिसाइलें शत्रु के AWACS (Airborne Warning and Control Systems) और टैंकर विमानों को लंबी दूरी से निशाना बना सकती हैं। यदि भारत और जापान के पास ऐसी उन्नत तकनीक नहीं होगी, तो युद्ध की स्थिति में उनके लड़ाकू विमानों को गंभीर खतरा हो सकता है। इसलिए, यह नई मिसाइल दोनों देशों के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, जो लंबी दूरी पर अचूक प्रहार करने की क्षमता प्रदान करेगी।
तकनीकी और रणनीतिक सहयोग
भारत की ओर से इस परियोजना में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और जापान की ओर से मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां शामिल हो सकती हैं। भारत का अग्नि मिसाइल कार्यक्रम और जापान का टाइप-12 मिसाइल विकास इस सहयोग के लिए तकनीकी आधार प्रदान कर सकता है। दोनों देशों के पास स्वदेशी मिसाइल तकनीकों का अनुभव है—भारत की अग्नि और निर्भय मिसाइलें (1,000 किमी पल्ला) और जापान की उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियां इस परियोजना को गति दे सकती हैं। यह सहयोग न केवल तकनीकी, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दोनों देशों को अमेरिका पर निर्भरता कम करने और क्षेत्रीय संतुलन को मजबूत करने का अवसर देगा।
इंडो-पैसिफिक में बदलता समीकरण
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी, विशेष रूप से सेंकाकू द्वीपों और हिमालयी क्षेत्र में भारत-चीन सीमा विवाद (2020 गलवान घाटी घटना), ने दोनों देशों को संयुक्त रक्षा रणनीति अपनाने के लिए प्रेरित किया है। जापान ने हाल ही में 2026 के लिए 8.8 ट्रिलियन येन (59.9 बिलियन डॉलर) का रक्षा बजट प्रस्तावित किया है, जिसमें लंबी दूरी की मिसाइलों और ड्रोन प्रौद्योगिकी पर विशेष ध्यान दिया गया है। भारत भी अपनी मिसाइल क्षमताओं को बढ़ा रहा है, जिसमें हाइपरसोनिक लॉन्ग रेंज एंटी-शिप मिसाइल (LRAShM) और प्रोजेक्ट विष्णु शामिल हैं, जो 2030 तक तैनात हो सकते हैं।
वैश्विक प्रभाव
यह मिसाइल परियोजना भारत और जापान के बीच 15वें वार्षिक शिखर सम्मेलन (29-30 अगस्त 2025) में की गई प्रतिबद्धताओं का हिस्सा है, जहां दोनों देशों ने रक्षा, व्यापार, और प्रौद्योगिकी में सहयोग को मजबूत करने का संकल्प लिया। यह सहयोग न केवल दोनों देशों की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक मिसाइल बाजार में भारत को एक प्रमुख निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है। यह परियोजना “मेक इन इंडिया” पहल को भी बल देगी, जिससे स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
भारत और जापान की यह संयुक्त मिसाइल परियोजना इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक नया सामरिक युग शुरू करने की क्षमता रखती है। 2030 तक तैयार होने वाली यह मिसाइल दोनों देशों को क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त बनाएगी। यह सहयोग न केवल तकनीकी नवाचार का प्रतीक है, बल्कि भारत-जापान की साझा दृष्टि को भी दर्शाता है, जो एक स्वतंत्र, खुला और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है।
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