जौनपुर, 28 अगस्त 2025। Jagadguru Rambhadracharya: जौनपुर के सांडीखुर्द गांव में 14 जनवरी 1950 को मकर संक्रांति के दिन जन्मे गिरिधर मिश्र, जिन्हें आज जगद्गुरु रामभद्राचार्य के नाम से जाना जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उनके बचपन का नाम उनकी दादी की मीरा बाई भक्ति के कारण गिरिधर रखा गया। मात्र दो महीने की उम्र में आंखों की रोशनी खोने के बावजूद, उन्होंने अपनी असाधारण स्मृति और विद्वता से दुनिया को चकित किया।
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पांच साल की उम्र में भगवद्गीता और आठ साल में रामचरितमानस के 10,800 छंद कंठस्थ कर लिए। जौनपुर के आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय से शिक्षा शुरू कर, उन्होंने संस्कृत व्याकरण, हिंदी, गणित, इतिहास जैसे विषयों में महारत हासिल की। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की और 1988 में रामानंद संप्रदाय के जगद्गुरु बने। रामभद्राचार्य ने चित्रकूट में तुलसी पीठ और जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो विशेष रूप से दिव्यांग छात्रों के लिए है।
22 भाषाओं के जानकार और 80 से अधिक ग्रंथों के रचयिता, वे संस्कृत साहित्य, काव्य, और दर्शन में प्रख्यात हैं। हाल ही में, उन्होंने वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज पर एक पॉडकास्ट में टिप्पणी की, जिसमें कहा कि प्रेमानंद संस्कृत का एक श्लोक बोलकर या उसका अर्थ समझाकर दिखाएं। इस बयान ने संत समाज और भक्तों में विवाद खड़ा कर दिया। कुछ ने इसे रामभद्राचार्य के ज्ञान का अहंकार बताया, जबकि उनके समर्थकों ने संस्कृत के महत्व पर जोर दिया।
विवाद बढ़ने पर रामभद्राचार्य ने सफाई दी कि प्रेमानंद उनके पुत्र तुल्य हैं और उनका उद्देश्य केवल शास्त्रीय ज्ञान और संस्कृत के अध्ययन को बढ़ावा देना था। उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए एकता की अपील की। यह विवाद सोशल मीडिया पर भी छाया रहा, जहां प्रेमानंद के भक्तों ने उनकी सादगी और भक्ति की सराहना की। यह घटना भारतीय संस्कृति में भाषा और भक्ति की भूमिका पर नई बहस का विषय बन गई है।
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