नई दिल्ली, 21 अगस्त 2025। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने शताब्दी वर्ष में अभूतपूर्व प्रभाव और गौरव के दौर से गुजर रहा है। 27 सितंबर 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन आज देश के शीर्ष संवैधानिक और प्रशासनिक पदों पर अपनी गहरी छाप छोड़ रहा है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और कई राज्यों के गवर्नर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर RSS से जुड़े स्वयंसेवकों की मौजूदगी ने संगठन की ताकत को रेखांकित किया है।
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस उपलब्धि को “संघ का स्वर्णिम काल” बताते हुए कई यूजर्स ने इसे एक गैर-राजनीतिक संगठन की असाधारण उपलब्धि करार दिया है।RSS, जो खुद को सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन के रूप में परिभाषित करता है, ने भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विचारधारा को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है।
संगठन की शाखाओं के माध्यम से लाखों स्वयंसेवकों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा से जोड़ा गया है। वर्तमान में देशभर में 73,117 दैनिक शाखाएं संचालित हो रही हैं, जो 922 जिलों और 27,720 मंडलों में फैली हैं। इन शाखाओं में स्वयंसेवकों को शारीरिक और वैचारिक प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसका प्रभाव अब देश की शासन व्यवस्था में साफ दिखाई देता है।
वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जैसे शीर्ष नेता RSS की शाखाओं से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा, कई राज्यों के गवर्नर और अन्य प्रशासनिक पदों पर भी RSS के स्वयंसेवक प्रभावी भूमिका में हैं। जल्द ही उपराष्ट्रपति पद पर भी RSS से जुड़े एक स्वयंसेवक के नियुक्त होने की संभावना जताई जा रही है, जिसे संगठन के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है।
हालांकि, इस बढ़ते प्रभाव ने विपक्षी दलों में चिंता भी पैदा की है। कुछ नेताओं ने RSS के प्रभाव को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए इसे “छिपा हुआ शासन” करार दिया। X पर एक यूजर ने लिखा, “यह वही संगठन है, जिसने 60 साल तक तिरंगा नहीं फहराया।” जवाब में RSS समर्थकों ने संगठन के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, जैसे 1947 में कश्मीर युद्ध और गोवा मुक्ति संग्राम में स्वयंसेवकों की भूमिका को उजागर किया।
RSS का दावा है कि वह एक गैर-राजनीतिक संगठन है, जो भारतीय संस्कृति और हिंदू समाज को संगठित करने के लिए काम करता है। फिर भी, भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसे इसके सहयोगी संगठनों के माध्यम से इसका प्रभाव देश की राजनीति में स्पष्ट है। संगठन की यह उपलब्धि जहां इसके समर्थकों के लिए गर्व का विषय है, वहीं आलोचकों के लिए बहस का मुद्दा बनी हुई है।
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