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Justice Yashwant Verma Cash Scandal: SC ने खारिज की जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका, ‘जली नकदी’ मामले में जांच प्रक्रिया को दी थी चुनौती

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Justice Yashwant Verma Cash Scandal

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  •   ‘जली नकदी’ मामले में हटाने की सिफारिश बरकरार
  •  सुप्रीम कोर्ट ने जांच प्रक्रिया को ठहराया सही

नई दिल्ली, 7 अगस्त 2025। Justice Yashwant Verma Cash Scandal:  सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ ‘जली नकदी’ मामले में गठित आंतरिक जांच समिति की प्रक्रिया और निष्कर्षों को चुनौती दी थी। 7 अगस्त 2025 को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जस्टिस वर्मा का आचरण विश्वास को प्रेरित नहीं करता।

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कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जस्टिस वर्मा ने अनुकूल परिणाम की उम्मीद में याचिका दायर करने में देरी की, जिससे उनकी अपील की विश्वसनीयता कमजोर हुई। यह विवाद 14-15 मार्च 2025 की रात को शुरू हुआ, जब जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद उनके स्टोररूम में जली और आधी जली नकदी के बंडल पाए गए। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे।

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने 3 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट में पाया कि स्टोर रूम, जहां नकदी मिली, जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण में था।

समिति ने इसे गंभीर कदाचार मानते हुए जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा ने इस जांच प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि आंतरिक जांच प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 के तहत संसद के विशेषाधिकार का अतिक्रमण करती है, जो जजों को हटाने का विशेष अधिकार संसद को देता है। उन्होंने यह भी कहा कि जस्टिस वर्मा को जांच में उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, क्योंकि समिति ने उनकी अनुपस्थिति में गवाहों से पूछताछ की, वीडियो रिकॉर्डिंग साझा नहीं की और सबूतों को एकत्र करने में पक्षपात किया।

जस्टिस वर्मा ने नकदी की जानकारी से इनकार करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने जांच प्रक्रिया में भाग लिया था और बाद में इसे असंवैधानिक कहना उचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जस्टिस वर्मा ने आग की घटना के बाद पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज की। इस बीच, संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा चल रही है, जिसमें 152 सांसदों (लोकसभा और राज्यसभा) ने हस्ताक्षर किए हैं। यह प्रस्ताव सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष दोनों के समर्थन से आगे बढ़ रहा है।

इस मामले ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दे को फिर से उजागर किया है। जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित किया गया था और उन्हें फिलहाल कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायिक कदाचार के खिलाफ सख्त रुख को दर्शाता है, लेकिन इसने आंतरिक जांच प्रक्रिया की वैधानिकता पर भी बहस छेड़ दी है।

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