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जापान सागर में चीन-रूस का संयुक्त नौसैनिक अभ्यास
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जापान सागर में बढ़ता सैन्य सहयोग
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चीन-रूस की नौसैनिक ताकत का प्रदर्शन
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इंडो-पैसिफिक में बढ़ती तनातनी का संकेत
जापान 4 अगस्त 2025। Japan Sea: जापान सागर में 1 अगस्त 2025 से शुरू हुए ‘जॉइंट सी-2025’ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास में चीन और रूस ने अपनी सामरिक साझेदारी को और मजबूत करने का प्रदर्शन किया है। यह अभ्यास 5 अगस्त तक रूस के व्लादिवोस्तोक बंदरगाह के पास चल रहा है। इस बार खास बात यह है कि चीन ने पहली बार अपनी किलो-क्लास हमलावर पनडुब्बी (ग्रेट वॉल 210) को रूस के जलक्षेत्र में तैनात किया है।
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यह पनडुब्बी, जिसे 1990 के दशक में रूस से खरीदा गया था। चीनी नौसेना के उत्तरी और पूर्वी थिएटर फ्लीट का हिस्सा है। इसके साथ ही चीनी नौसेना के दो टाइप 052डी-क्लास गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर (शाओक्सिंग और उरुमकी), एक टाइप 903ए सप्लाई जहाज, और एक पनडुब्बी बचाव जहाज (सिहु) भी इस अभ्यास में शामिल हैं। अभ्यास का उद्देश्य और गतिविधियां’मैरीटाइम इंटरेक्शन-2025′ नामक इस अभ्यास में दोनों देशों की नौसेनाएं तोपखाने से फायरिंग, पनडुब्बी रोधी युद्ध, हवाई रक्षा, खोज और बचाव कार्य, और समुद्री युद्ध अभ्यास जैसे कई प्रशिक्षण परिदृश्यों पर काम कर रही हैं। रूसी नौसेना की ओर से डिस्ट्रॉयर आरएफए एडमिरल ट्रिब्यूट्स, कॉर्वेट आरएफएस ग्रोमकी, पनडुब्बी आरएफएस वोल्खोव, और पनडुब्बी बचाव जहाज इगोर बेलोसोव शामिल हैं।
अभ्यास के बाद दोनों देश प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में संयुक्त नौसैनिक गश्त भी करेंगे। चीन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यह अभ्यास दोनों देशों के बीच वार्षिक सहयोग योजना का हिस्सा है और इसका किसी तीसरे देश से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, यह अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अन्य सहयोगी देशों ने 10 जुलाई से 8 अगस्त तक ‘रिजॉल्यूट फोर्स पैसिफिक 2025’ नामक बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास किया, जिसमें 400 से अधिक विमान और 12,000 सैन्यकर्मी शामिल थे। इस संदर्भ में, चीन और रूस का यह संयुक्त अभ्यास इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सामरिक संतुलन को प्रभावित करने वाला माना जा रहा है।
किलो-क्लास पनडुब्बी की खासियत
किलो-क्लास पनडुब्बी, जिसे रूस ने डिजाइन किया था, अपने समय की अत्याधुनिक पनडुब्बियों में से एक थी। इसमें हाइड्रोडायनामिक टियरड्रॉप-आकार का ढांचा, लगभग दो सप्ताह तक पानी के नीचे रहने की क्षमता और कंपन-रोधी प्रणोदन प्रणाली है। हालांकि, आधुनिक जापानी और दक्षिण कोरियाई पनडुब्बियों की तुलना में यह अब पुरानी हो चुकी है, जो लिथियम-आयन बैटरी तकनीक से लैस हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने अपनी नई युआन-क्लास (टाइप 039ए) पनडुब्बियों के एकॉस्टिक सिग्नेचर को छिपाने के लिए किलो-क्लास को चुना, ताकि विदेशी निगरानी प्रणालियों से बचा जा सके।
भारत पर प्रभाव
भारत, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति है, इस अभ्यास पर करीबी नजर रख रहा है। चीन और रूस की बढ़ती सैन्य साझेदारी क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता को प्रभावित कर सकती है। भारत, जो रूस से लंबे समय से हथियारों और सैन्य तकनीक का आयात करता रहा है, अब इस साझेदारी को संतुलित करने के लिए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ अपने रक्षा सहयोग को और मजबूत कर रहा है। क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे गठबंधनों के माध्यम से भारत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
चीन और रूस का यह संयुक्त नौसैनिक अभ्यास न केवल उनकी सैन्य ताकत का प्रदर्शन है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में उनके “नो-लिमिट्स” साझेदारी के संदेश को भी मजबूत करता है। जापान सागर में पहली बार चीनी पनडुब्बी की तैनाती ने क्षेत्रीय शक्तियों, विशेष रूप से जापान और दक्षिण कोरिया, को सतर्क कर दिया है। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह अपनी सामरिक रणनीति को और सुदृढ़ करे ताकि क्षेत्र में स्थिरता और संतुलन बनाए रखा जा सके।
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