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लखनऊ में सपा की नई रणनीति, बसपा के दलित वोट बैंक पर नजर
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उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल, सपा की मिशनरी कार्य में तेजी
लखनऊ, 3 अगस्त 2025। उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी (सपा) ने 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों को और तेज कर दिया है। पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के असंतुष्ट नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाने के लिए एक विशेष मिशन शुरू किया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के नेतृत्व में यह रणनीति दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के मतदाताओं को आकर्षित करने पर केंद्रित है, जो लंबे समय से बसपा का मजबूत आधार रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, सपा ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बसपा के स्थानीय नेताओं, खासकर दलित समुदाय के प्रभावशाली चेहरों से संपर्क करने का निर्देश दिया है।
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इस अभियान के तहत सपा कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर बसपा के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं, जो मायावती के नेतृत्व से नाराज हैं या पार्टी में अपनी उपेक्षा महसूस कर रहे हैं। सपा का मानना है कि बसपा का वोट बैंक, खासकर दलित मतदाता, अब पहले जितना मजबूत नहीं रहा, और यह उनके लिए एक सुनहरा अवसर है। लखनऊ में सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, “हमारा लक्ष्य उन लोगों को अपने साथ जोड़ना है जो सामाजिक न्याय और समावेशी विकास में विश्वास रखते हैं। बसपा के कई कार्यकर्ता और नेता बदलाव चाहते हैं, और हम उन्हें एक मंच प्रदान कर रहे हैं।”
इस रणनीति के तहत सपा ने विशेष रूप से पूर्वांचल और बुंदेलखंड के उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां बसपा का प्रभाव रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा की शानदार जीत, जहां पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 37 सीटें हासिल कीं, ने अखिलेश यादव का आत्मविश्वास बढ़ाया है। इस जीत ने सपा को राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया और अब पार्टी इस गति को विधानसभा चुनाव तक बनाए रखना चाहती है। सपा का मानना है कि बसपा के कमजोर होने से उसका दलित वोट बैंक अब उनके लिए सुलभ हो सकता है।
हालांकि, इस रणनीति को लागू करना इतना आसान नहीं है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में गठबंधन की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी। इसके बावजूद, सपा का यह कदम बसपा के लिए खतरे की घंटी हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा की यह रणनीति न केवल बसपा के वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए भी चुनौती बन सकती है, जो दलित और OBC मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी है।
सपा ने इस मिशन को और प्रभावी बनाने के लिए अपने संगठन में भी बदलाव किए हैं। हाल ही में अखिलेश यादव ने कुशीनगर को छोड़कर सभी जिलों की कार्यकारिणी भंग कर दी थी, ताकि एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत को लागू किया जा सके और संगठन को और मजबूत किया जा सके। यह कदम पार्टी के भीतर नए नेतृत्व को मौका देने और कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ाने के लिए उठाया गया है।
सपा की यह रणनीति उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नया मोड़ ला सकती है। बसपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को अपने साथ जोड़कर सपा न केवल अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव में एक मजबूत दावेदारी पेश करना चाहती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा का यह मिशनरी कार्य उसे अपेक्षित सफलता दिला पाएगा, या बसपा और भाजपा इस रणनीति का जवाब देने में सफल होंगे।