बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) प्रमुख नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपनी सियासी सूझबूझ का परिचय देते हुए जातिगत जनगणना को हथियार बनाकर बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। नीतीश की अगुवाई में बिहार सरकार द्वारा कराई गई जातिगत जनगणना और इसके बाद आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का फैसला न केवल सामाजिक न्याय के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है, बल्कि यह बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक सियासी मास्टरस्ट्रोक के रूप में भी देखा जा रहा है। इस कदम ने विपक्षी दलों को रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है और नीतीश को बिहार की सियासत में फिर से ‘किंगमेकर’ की भूमिका में ला खड़ा किया है।
जातिगत जनगणना: नीतीश का सियासी हथियार
नीतीश कुमार ने 2022 में बिहार में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया था, जिसे केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद लागू किया गया। इस जनगणना के आंकड़ों ने बिहार की सामाजिक और सियासी तस्वीर को स्पष्ट कर दिया। आंकड़ों के मुताबिक, बिहार की आबादी में अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत से अधिक है, जबकि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी करीब 20 प्रतिशत है। इन आंकड़ों के आधार पर नीतीश सरकार ने बिहार में आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का विधेयक पारित किया, जिसमें ईबीसी, ओबीसी, एससी और एसटी के लिए नौकरियों और शिक्षा में अधिक हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई।नीतीश का यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। जेडीयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा, “नीतीश कुमार ने हमेशा सामाजिक समरसता और कमजोर वर्गों के उत्थान को प्राथमिकता दी है। जातिगत जनगणना और बढ़ा हुआ आरक्षण बिहार के सामाजिक ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।”
विपक्ष को मिली कड़ी चुनौती
नीतीश की इस रणनीति ने विपक्षी दलों, खासकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस, को बैकफुट पर ला दिया है। आरजेडी, जो लंबे समय से ओबीसी और दलित वोट बैंक का दावा करती रही है, अब नीतीश के इस कदम से असहज है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश के फैसले का स्वागत तो किया, लेकिन इसे “चुनावी जुमला” करार देते हुए कहा, “नीतीश जी अब सियासी फायदे के लिए सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैं, लेकिन उनकी सरकार ने 17 सालों में बिहार के लिए क्या किया?” कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी जातिगत जनगणना का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग उठाकर नीतीश पर दबाव बनाने की कोशिश की। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश ने इस कदम से विपक्ष के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने कहा, “नीतीश ने जातिगत जनगणना को एक सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। यह कदम न केवल ओबीसी और ईबीसी वोटरों को लुभाने की कोशिश है, बल्कि यह नीतीश को गठबंधन की सियासत में मजबूत स्थिति में ला खड़ा करता है।”
नीतीश: बिहार की सियासत के किंगमेकर
नीतीश कुमार की सियासी चालें हमेशा से बिहार की राजनीति में निर्णायक रही हैं। 2005 से 2022 तक अलग-अलग गठबंधनों के साथ सत्ता में रहे नीतीश ने बार-बार साबित किया है कि वह बिहार की सियासत के बेताज बादशाह हैं। चाहे वह 2013 में एनडीए से अलग होना हो या 2022 में आरजेडी के साथ महागठबंधन बनाना और फिर वापस एनडीए में लौटना, नीतीश ने हमेशा सियासी गणित को अपने पक्ष में रखा है। जातिगत जनगणना और आरक्षण बढ़ाने का उनका ताजा फैसला आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया माना जा रहा है। बिहार में ओबीसी और ईबीसी वोटरों की निर्णायक भूमिका को देखते हुए, नीतीश का यह कदम उन्हें इन समुदायों का चैंपियन बना सकता है। जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “नीतीश जी ने यह साबित कर दिया है कि वह बिहार की सियासत में अब भी सबसे बड़े रणनीतिकार हैं। यह कदम न केवल विपक्ष को कमजोर करेगा, बल्कि एनडीए के भीतर उनकी स्थिति को और मजबूत करेगा।”
चुनौतियां और आलोचनाएं
हालांकि, नीतीश का यह कदम बिना चुनौतियों के नहीं है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि जातिगत जनगणना और आरक्षण बढ़ाने का फैसला केवल सियासी लाभ के लिए लिया गया है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंद्रा साहनी मामले में दिए गए फैसले के तहत 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को तोड़ने का फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है। बिहार सरकार ने इस विधेयक को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है ताकि इसे न्यायिक समीक्षा से बचाया जा सके, लेकिन यह प्रक्रिया आसान नहीं होगी।इसके अलावा, नीतीश सरकार पर बिहार में बढ़ते अपराध और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। एनडीए के सहयोगी और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता चिराग पासवान ने हाल ही में बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर तीखी आलोचना की थी, जिसने गठबंधन के भीतर तनाव को उजागर किया। ऐसे में, नीतीश के लिए जातिगत जनगणना के सियासी फायदे को भुनाने के साथ-साथ इन चुनौतियों से निपटना भी जरूरी होगा।
आगे की राह
नीतीश कुमार का जातिगत जनगणना और आरक्षण बढ़ाने का फैसला बिहार की सियासत में एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यह कदम न केवल सामाजिक न्याय के एजेंडे को मजबूत करता है, बल्कि नीतीश को बिहार की सियासत में फिर से केंद्र में ला खड़ा करता है। हालांकि, विधानसभा चुनावों में इस कदम का कितना फायदा जेडीयू को मिलेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नीतीश सरकार इन नीतियों को जमीनी स्तर पर कैसे लागू करती है। बिहार की सियासत में नीतीश की यह चाल विपक्ष के लिए एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह भी साफ है कि नीतीश का यह मास्टरस्ट्रोक बिहार की सियासत को लंबे समय तक प्रभावित करेगा। क्या नीतीश एक बार फिर बिहार के ‘किंगमेकर’ बनकर उभरेंगे, यह आने वाला समय ही बताएगा।