Home » ब्यूरेकेषी » अमान्य दलों के चंदे में 223% की उछाल: ADR की ताजा रिपोर्ट ने खड़े किए सवाल

अमान्य दलों के चंदे में 223% की उछाल: ADR की ताजा रिपोर्ट ने खड़े किए सवाल

Share :

Share :

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक ताजा रिपोर्ट ने भारत की राजनीतिक फंडिंग को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में गैर-मान्यता प्राप्त (अनरेग्नाइज्ड) राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे में 223% की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है, जब देश में राजनीतिक पारदर्शिता और चुनावी फंडिंग को लेकर बहस छिड़ी हुई है। विपक्षी दलों ने इस बढ़ोतरी को “चुनावी वित्त की अंधेरी गलियों” का सबूत बताते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है, जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है।

ADR की रिपोर्ट: चौंकाने वाले आंकड़े

ADR की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023-24 में गैर-मान्यता प्राप्त दलों को कुल 1,987 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जो 2022-23 के 614 करोड़ रुपये की तुलना में 223% अधिक है। ये दल वे हैं, जो निर्वाचन आयोग के साथ पंजीकृत तो हैं, लेकिन राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त नहीं हैं। ऐसे दलों को आमतौर पर “छोटे” या “क्षेत्रीय” दलों की श्रेणी में रखा जाता है, जिनमें से कई का कोई ठोस संगठनात्मक ढांचा या चुनावी प्रभाव नहीं होता।रिपोर्ट में यह भी उजागर हुआ कि इन दलों को मिलने वाला चंदा बड़े कॉरपोरेट घरानों, व्यक्तियों, और अज्ञात स्रोतों से आया है। विशेष रूप से, कई दलों ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए भारी मात्रा में धन प्राप्त किया, जिसके स्रोतों की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। ADR ने बताया कि इनमें से 60% से अधिक चंदा उन दलों को मिला, जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में एक भी चुनाव नहीं लड़ा।

चंदे का पैटर्न और सवाल

रिपोर्ट के अनुसार, गैर-मान्यता प्राप्त दलों में से कुछ ने 100 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा जुटाया, जबकि उनके पास न तो कोई बड़ा कार्यालय है और न ही सक्रिय राजनीतिक गतिविधियां। उदाहरण के लिए, एक दिल्ली-आधारित दल, जिसका नाम “जन सेवा पार्टी” है, ने 2023-24 में 150 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त किया, लेकिन इस दल ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा। इसी तरह, मुंबई की एक अन्य पार्टी ने 120 करोड़ रुपये का चंदा जुटाया, जिसमें से 80% इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से आया।ADR के विश्लेषक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अनिल वर्मा ने कहा, “यह चिंताजनक है कि गैर-मान्यता प्राप्त दल, जिनका कोई चुनावी इतिहास नहीं है, इतनी बड़ी राशि जुटा रहे हैं। यह सवाल उठता है कि क्या इन दलों का उपयोग बड़े दलों के लिए धन को चैनलाइज करने के लिए किया जा रहा है।”

विपक्ष का हमला

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस रिपोर्ट को आधार बनाकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, “मोदी सरकार की नीतियों ने राजनीतिक फंडिंग को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है। गैर-मान्यता प्राप्त दलों को मिलने वाला चंदा काले धन को सफेद करने का जरिया बन रहा है।” आम आदमी पार्टी (आप) के नेता सौरभ भारद्वाज ने मांग की कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की पूरी जांच हो और चंदे के स्रोतों को सार्वजनिक किया जाए।विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स की आड़ में बड़े कॉरपोरेट्स से चंदा लिया और गैर-मान्यता प्राप्त दलों को इसका इस्तेमाल “मनी लॉन्ड्रिंग” के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा, “यह संयोग नहीं है कि बीजेपी शासित राज्यों में ऐसे दलों की संख्या और चंदा दोनों बढ़ रहे हैं। यह एक सुनियोजित रणनीति है।”

बीजेपी का जवाब

बीजेपी ने इन आरोपों को “बेबुनियाद” करार दिया है। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, “कांग्रेस और विपक्षी दल हर बार बिना सबूत के बीजेपी पर कीचड़ उछालते हैं। गैर-मान्यता प्राप्त दलों को चंदा मिलना कोई नई बात नहीं है। अगर कोई गड़बड़ी है, तो निर्वाचन आयोग और अन्य जांच एजेंसियां कार्रवाई कर सकती हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी ने हमेशा पारदर्शी तरीके से चंदा जुटाया है और इलेक्टोरल बॉन्ड्स ने राजनीतिक फंडिंग को और व्यवस्थित किया है।विशेषज्ञों की चिंताराजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चंद्रचूड़ सिंह ने कहा, “जब गैर-मान्यता प्राप्त दलों को इतना बड़ा चंदा मिलता है, तो यह सवाल उठता है कि क्या ये दल केवल कागजी हैं। हमें एक ऐसी व्यवस्था चाहिए, जिसमें हर चंदे का स्रोत सार्वजनिक हो।” उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड्स की गोपनीयता को खत्म करने की वकालत की।

जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर #PoliticalFunding और #ElectoralBonds जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कई यूजर्स ने सरकार से मांग की है कि चंदे के स्रोतों को पारदर्शी बनाया जाए। एक यूजर ने एक्स पर लिखा, “अगर छोटे दल इतना पैसा जुटा सकते हैं, तो फिर बड़े दलों को कितना मिल रहा होगा? देश को सच जानने का हक है।”

आगे की राह

ADR ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि गैर-मान्यता प्राप्त दलों की फंडिंग पर सख्त निगरानी की जरूरत है। संगठन ने निर्वाचन आयोग से मांग की है कि ऐसे दलों की वित्तीय गतिविधियों की जांच के लिए एक विशेष समिति गठित की जाए। साथ ही, इलेक्टोरल बॉन्ड्स के स्रोतों को सार्वजनिक करने की मांग भी तेज हो रही है।आगामी संसद सत्र में यह मुद्दा विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार बन सकता है। क्या सरकार इस विवाद का स्पष्ट जवाब दे पाएगी, या यह मुद्दा और गहराएगा? यह देखना बाकी है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement
News Portal Development Services in Uttar Pradesh
Cricket Score
सबसे ज्यादा पड़ गई
Share Market

शहर चुनें

Follow Us